दे दी हमें
आज़ादी बिना हाथ
पैर मार ,
बहादुरों की शहादत
तुमने कर दी
बेकार |
जब जिया मौत
को उन्होनें करीब
से ,
तब कितना खून बहाया
तुमने अपने शरीर
से |
अहिंसा को बनाते
रहे खड़ग और
ढाल ,
वीरों की शहादत
का तुमने किया
तिरस्कार |
काकोरी में धावा
बोला अँग्रेज़ों की
रेल में ,
तुम कायर घुसे
रहे फिरंगियों की
जेब में |
अयाशियाँ की तुमने,
हाथ मिलाया अमीरों
से ,
श्रेय ले गये
तुम सारा, देश
के सच्चे वीरों
से ||
किस बात के
साधू बन गये तुम
साबरमती के ,
तुम कारण थे
शूरवीरों की बहूमूल्य
श्रति
के ||
नहीं रोकी फाँसी उनकी, कर दिया संहार ,
दे दी हमें
आज़ादी बिना हाथ
पैर मार ,
बहादुरों की शहादत
पे तुम ना
हुए शर्म सार
||