Sunday, 24 March 2013

Scooty पे जो वो निकले अपना चेहरा लपेट कर....


Scooty पे जो वो निकले अपना चेहरा लपेट कर  ,
हम तो रह जाते हैं अपनी आशिकी समेट कर ।

उनके चेहरे में कुछ तो बात जरूर है ,
या तो Pimple ज्यादा है या खूबसूरती का गुरूर है ।
Attraction हैं वो शहर की हर सड़कों की ,
क्यों कि वो करती  हैं कंजूसी  कपडों की ।

हाथों में दस्ताने लम्बे लम्बे, पर दुपट्टा सिमटता हुआ होगा ,
तन पे कपड़ा हो न हो, पर चेहरा लिपटा हुआ होगा ।

फिर कोई मनचला सीटी बजा दे तो झूठा गुस्सा दिखती हैं ,
मन में तो खुश होती हैं पर लडकों को जरूर पिटवाती हैं ।

जहां से वो गुजरती हैं , समझती हैं बिजलियाँ खुद को उस डगर की ,
खुद को ऐश्वर्या समझने वालियों, मिस वर्ल्ड हो तुम सिर्फ अपने घर की ।

अनदेखी खूबसूरती के दरिया में उतर जाते हैं हम,
पर्दा हटता है, चेहरा देख कई बार तो डर जाते हैं हम ।

उनके होठों पे लिपस्टिक से ज्यादा रहती अंग्रेजी गालियाँ हैं ,
रोब ऐसे दिखाती हैं जैसे लादेन की सालियाँ हैं ।
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माना फैशन है, कल्चर है, पर तुम कुछ तो सब्र करो
किसी की नहीं तो कम से कम आँचल की तो क़द्र करो ।
 

© Sushant Jain
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Tuesday, 19 March 2013

तुम कुछ इस तरह गए हो हमें छोड़ कर


इस कविता में कवि अपने प्रियजनों से बिछड़ने के दर्द को
सांसारिक वस्तुओं से तुलना करता है ---


तुम कुछ इस तरह गए हो हमें छोड़ कर,

जैसे संसद गयी हो दिल्ली छोड़ कर , जैसे सांभर गया हो इडली छोड़ कर  |
मुर्दा गया हो जनाजा छोड़ कर, नाड़ा गया हो पजामा छोड़ कर |
झाग गया हो साबुन छोड़ कर. चाशनी गयी हो गुलाब जामुन छोड़ कर  |
मद्रासी गया हो डोसा छोड़ कर, आलू गया हो समोसा छोड़ कर |

तुम कुछ इस तरह गए हो हमें छोड़ कर  |

लाइट गयी हो जुगनू छोड़ कर, लैला गयी हो मजनू छोड़ कर |
शराबी गया हो शराब छोड़ कर, डॉक्टर गया हो बीमार छोड़ कर |
पतंगा गया हो आग छोड़ कर , आरिअल गया हो दाग छोड़ कर |
तुम कुछ इस तरह गए हो हमें छोड़ कर ...



© Sushant Jain
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Tuesday, 12 March 2013

कल से पढेंगे




नौवीं पास कर हम दसवीं में क्या आ गए |
लोग Board  की तैयारी का सुझाव देने आ गए ||
अप्रैल के बाद मई जून की छुट्टियां जो आयीं  |
भूल गए हम अप्रैल की सारी पढ़ाई  ||

पूरे महीने चढ़ा रहा फिल्मों का जूनून |
देखते हे बीती मई, आ गया जून ||
Holidays homework हम कल से पक्का शुरू करेंगे |
थोड़ा थोड़ा syllabus exam के लिए कल से पढेंगे ||

यही सोचते सोचते जून गुजर गयी |
जुलाई में homework की मार बरस गयी ||
इधर उधर से टाप के हमने होमवर्क पूरा किया |
पर अगस्त तक current Syllabus अधूरा किया ||

सोचा अभी तो सितम्बर ही है, बाद में पढ़ लेंगे |
रात रात भर जाग के किताबें  रगड़ लेंगे ||
अक्टूबर के Term Exam में थोड़ा बहुत पढ़ा |
ऐसा लगा मनो हम पे हिमालय गिर पड़ा ||

नवम्बर में दिवाली आई तो हो गया घर में उजाला |
दिसम्बर में PreBoards आये , निकल गया हमारा दीवाला ||
दसवीं का Syllabus भी भैया कम नहीं होता था |
पर हमारा रजाई से निकलने का मन नहीं होता था ||

जनवरी  में रिलीज़ हो गयी "कहो ना प्यार है" |
टीचर बोले "तुम्हारा PreBoard  का  Result  तैयार है" ||

नीचे से हमारी First Rank  आ गयी |
फरवरी में माधुरी की "पुकार" आ गयी ||

यूं ही फिल्में देखते , गुजर गयी फरवरी  |
मार्च के शुरू होते ही, शुरू हुई गड़बड़ी ||
Question Bank पढ़ पढ़ के हमने परिक्षा निकली |
मार्च के अंत तक सूरत हो गयी कंगाली ||

कवि का दर्द – MORAL OF THE STORY --
कभी न कहना  "कल से पढेंगे", कल का नहीं कोई भरोसा |
कहीं जीवन न बन जाये, बिन आलू का  समोसा ||



© Sushant Jain
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Thursday, 7 March 2013

इतने EXCEPTION आएंगे की तू CATCH नहीं कर पाएगी


"इतने EXCEPTION आएंगे की तू  CATCH  नहीं कर पाएगी"

तेरी मेरी जोड़ी दुनियाँ  MATCH  नहीं कर पाएगी ,
इतने EXCEPTION आएंगे की तू  CATCH  नहीं कर पाएगी ।।

तू  CLIENT VISIT सा सुन्दर OFFICE, मैं  CLIENT CALL का  TERROR  हूँ ।
तू  SERVER पे चलता कोड है, मैं JAVA SCRIPT  की  ERROR हूँ ।।

तुम  CONCREAT  CLASS जैसी मैं आधा अधूरा ABSTRACTION हूँ |
तुम APPRECIATION MAIL हो, मैं WEEKEND में ESCALLATION   हूँ ||

मैं  HR  का अनचाहा  PING, तुम  "SWEETS AT MY DESK"  का  MAIL.
तुम  INTEGRATION TEST PASS, मैं  "ALL TEST CASE ARE FAIL".

मैं LOAD RUNNER का OVER LOAD , तू THREAD जैसी LIGHT WEIGHT.
तू RUNNABLE का RUN METHOD, मैं THREAD का METHOD WAIT();

मैं SQL का  DROP COMMAND,  तुम  STORED PROCEDURE जैसी ।
हमारे  CONCATENATION से  SQL QUERRY बनेगी ऐसी ।।
लाख चला लो वो QUERRY ,RECORDS FETCH नहीं कर पाएगी ।
इतने EXCEPTION आएंगे की तू CATCH नहीं कर पाएगी ।।
इतने EXCEPTION  आएंगे की  तू  CATCH  नहीं कर पाएगी ।।


© Sushant Jain
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This poem is inspired from "Mushkil hai apna mel priye" by Sunil Jogi Ji.

Sunday, 3 March 2013

हे माननीय पढ़ाई

“हे माननीय पढ़ाई”

हे माननीय पढ़ाई , तुम क्या खा कर हो आई |
रातों की जो नींद उड़ा दे, तुम हो वो अंगड़ाई  ||
जो तुम्हारे पीछे पड़ जायें , उनके चश्में चढ़  जाते हैं ।
जो तुमसे पीछे रह जाएँ वो नज़रों में गिर जाते हैं ।।

Mathematics की वो Differentiation, वो खतरनाक Quadratic Equation.
Radian , Median का वो माया जाल, Father – Son की AGE की वो Situation.
Trigonometry ,Geometry ,Alzebra में, हार अपनी क़ुबूल गया |
Integration Sign बना बना के, अपने नाम का “S” बनाना भूल गया ||

Physics पढ़ने का जैसे तैसे current  मुझमें produce  हुआ ,
पर झटका ऐसा लगा मनो सब कुछ  reduce  हुआ  ।।
Magnetic field में सीधा चलता electron का path, खुद से circular हो जाता है ।
Positive Negative charge पढ़ पढ़ के दिमाग nutral हो जाता है ।।

Chemistry में reactions की समझ ना आयी मुझको काया |
Practical में Test Tube में से सिर्फ धुआँ ही नज़र आया ||
जबरदस्ती तो Chemistry  में इस हद तक हो गयी ,
Atom  को किसी ने देखा नहीं और Proton की खोज हो गयी ।।

नाम भूल जाता हु मैं अपना जब कोई Formula  सामने अता है ।
Facebook पे tag  किया हुआ कोई फोटो मुझे मेरा नाम याद दिलाता है ।।
तुम्हे समझने को कितनी रातें जाग जाग के बिताईं |
हे माननीय पढ़ाई , तुम क्या खा कर हो आई ||


© Sushant Jain
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